ये है सच्ची कहानी , इसे मजाक न समझना !
दो सहेली ढूंढ रही हैं ,अपना अपना सजना !!
उन दोनों में से सीता लिखती थी कविता ,
कविता का दर्द देख , गीता को हुई चिंता !!
पंक्तियाँ पढ़ ...गीता हो गयी परेशान !
कहीं इसे भी पसंद तो नहीं है ... मेरी ही जान !!
अपने डर को छुपाते हुए गीता ने पुछा ,
कोन है ? कोन है ? मुझे तो कोई भी न सूझा !!
"मुझे भी एक लड़का पसंद है " गीता बोली ,
मजाक समझ सीता बोली - " मुझे न दे तू गोली " !!
जब चली उनकी वार्तालाप कुछ और देर !
सीता को समझ आया, गीता न रही थी उसे छेड !!
गीता ने तो उसे सच्ची कथा सुनाई ,
गलत तो सीता थी , जो दर्द समझ न पायी !!
दोनों ने एक दूजे की पसंद का नाम पुछा ,
मन में गीता सोचे --" काश ...तेरा हो कोई दूजा "
शर्माती रही दोनों , कोई नाम न बताये !
धड़कने हुई तेज , सूझे न कोई उपाय !!
दोनों सहेलियों ने फिर रास्ता निकाला ,
अपनी पसंद के नाम का फिर पहला अक्षर लिख डाला !!
साथ ही दोनों ने रक्खी एक शर्त ,
जानना है नाम तो पहले करो दिमाग खर्च !!
एक दुसरे की पसंद के नाम का मरना है तुक्का ,
अगर नाम हुआ गलत , तो फिर ख़तम यहीं पे मुद्दा !!
दोनों सहेलियों की दोस्ती थी गहरी !
तुक्के भी लगे सही , खुली राजो की तिजोरी !!
सुस्पेंसे तोडती सीता ने जैसे ही कहा - 'अ'
मिली राहत गीता को , बोली --" मेरा वाला तो 'त' "
दिल को हल्का किया , दोनों ने अपनी गाथा सुनाई !
करे अब गहरा अध्यन की कैसे जाये एक दूजे की ग्रहस्ती बस्वायी !!
दोस्तों ये कहानी नही सीता और गीता की ,
झाको अपने मन में तो पाओ आपनी ही किसी सहेली की !!